'चरणदास चोर' नाटक पर रोक लगने पर कुछेक लोगों के लिखने-बोलने के अलावा आमतौर पर चुप्पी छाई हुई है। लगता है अब तमाम प्रतिष्ठित प्रगतिशीलों के लिए हबीव के नाटक पर रोक लगने का विरोध करना भी दायरे से बाहर की चीज हो गया है। सांप्रदायिकता के विरोध पर बड़े-बड़े भाषण देने वाले ऐसे तमाम लोगों पर विजयबहादुर की यह कविता सीधे-सादे शब्दों में तीखी बात कह दे रही है...
अच्छे नागरिक
— विजयबहादुर सिंह
अच्छे नागरिक
चुप रहते और बर्दाश्त करते हैं
अच्छे नागरिक
अपने मतलब से मतलब रखते हैं
अच्छे नागरिक
गवाह नहीं होते बुरी बात के
अच्छे नागरिक
कभी भी नहीं करते प्रतिरोध
4 comments:
बहुत गहरी चोट कर रही है रचना। रचना प्रेषित करने लिए आभार।
आईना दिखाई की यह तरकीब अच्छी लगी...
....इसीलिए रौंदे जाते हैं !
is samaaj me achhe naagrik ka kya matlab nikala jaataa hai, uspe sahee vyang hai...
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