कवि उदयप्रकाश के योगी आदित्यनाथ के हाथों सम्मान लेने की खबर पर आजकल एक बहस ब्लॉगजगत में चल रही है। विचारशून्यता के इस दौर में यह बहस भी सांप्रदायिकता के खतरे पर किसी गंभीर विमर्श की बजाय निम्न कोटि की थुक्का-फजीहत में तब्दील हो चुकी है। होना तो यह चाहिए था कि इस बहाने सांप्रदायिकता-विरोध की गिरावट पर कोई सार्थक चर्चा चलती। खैर हम नागार्जुन की एक प्रसिद्ध कविता दे रहे हैं, जो आज के 'हिटलरों' के छुपे हुए नाखूनों और पंजों से सचेत रहने की बात करती है...। खासकर ऐसे दौर में जब फासीवाद चुपचाप अपना काम कर रहा है, उसके असली चरित्र को पलभर के लिए भी न भूलने और उससे ज्यादा सावधान रहने की जरूरत होती है।
हिटलर के तम्बू में
अब तक छिपे हुए थे उनके दांत और नाखून
संस्कृति की भट्ठी में कच्चा गोश्त रहे थे भून।
छांट रहे थे अब तक बस वे बड़े-बड़े कानून।
नहीं किसी को दिखता था दूधिया वस्त्र पर खून।
अब तक छिपे हुए थे उनके दांत और नाखून।
संस्कृति की भट्ठी में कच्चा गोश्त रहे थे भून।
मायावी हैं, बड़े घाघ हैं,उन्हें न समझो मंद।
तक्षक ने सिखलाये उनको 'सर्प-ऩृत्य' के छंद।
अजी, समझ लो उनका अपना नेता था जयचंद।
हिटलर के तम्बू में अब वे लगा रहे पैबन्द।
मायावी हैं, बड़े घाघ हैं, उन्हें न समझो मंद।
7 comments:
तक्षक ने सिखलाये उनको 'सर्प-ऩृत्य' के छंद।
अजी, समझ लो उनका अपना नेता था जयचंद।
बहुत बडिया और सटीक अभिव्यक्ति है आभार्
लाजवाब कविता।
शानदार कविता है, कपिल भाई। मैं इस ब्लॉग पर उदयप्रकाश की कविता तानाशाह देने की सोच रहा था, लेकिन जब से उन्होंने भोगी आदित्यनाथ के हाथों पुरस्कार लिया है, तब से मन खिन्न है। खैर, फिर भी उनकी रचना तो दी ही जा सकती है, क्यों क्या विचार है।
समाज के गद्दारों के विरूद्ध समाज को आईना दिखाने के लिए अच्छे विचार / सुझाव हैं ।
सुने उदयजी। बाबा की यह कविता आपके लिए है।
कपिल , आप सही कह रहे हैं !
मनोज भाई, कृपया स्पष्ट करें कि "समाज के गद्दारों" से आपका क्या आशय है? कहीं ऐसा तो नहीं कि आदित्यनाथ द्वारा सम्मान ग्रहण करने भर से उदय प्रकाश गद्दार हो गये हों? मंतव्य स्पष्ट करें, ताकि बात/बहस और आगे बढ़े…
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