1. शक्तिशाली और सतत राष्ट्रवाद — फासिस्ट शासन देश भक्ति के आदर्श वाक्यों, गीतों, नारों, प्रतीकों और अन्य सामग्री का निरंतर उपयोग करते हैं. हर जगह झंडे दिखाई देते हैं जैसे वस्त्रों पर झंडों के प्रतीक और सार्वजनिक स्थानों पर झंडों की भरमार. जबकि वास्तव में ये किसी भी देश के मुट्ठी भर लोगों की सत्ता के कट्टर समर्थक होते हैं। इनकी ''देशभक्ति'' का अर्थ मुट्ठीभर लोगों की समृद्धि, और बहुसंख्यक आबादी की बदहाली होती है।
2. मानव अधिकारों के मान्यता प्रति तिरस्कार — क्योंकि दुश्मनों से डर है इसलिए फासिस्ट शासनों द्वारा लोगो को उकसाया जाता है कि यह सब सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए वक्त की ज़रुरत है. शासकों के दृष्टिकोण से लोग घटनाक्रम को देखना शुरू कर देते हैं और यहाँ तक कि वे अत्याचार, हत्याओं, और आनन-फानन में सुनाई गयी कैदियों को लम्बी सजाओं का अनुमोदन करना भी शुरू कर देते हैं.
3. दुश्मनदुश्मनों/बलि के बकरों की तलाश: लोगों को आतंकवाद के नाम पर, उन्माद की हद तक कथित खतरे और दुश्मन - नस्लीय, जातीय, धार्मिक अल्पसंख्यक, उदारतावादी, कम्युनिस्ट - के के खात्मे की जरूरत के प्रति उकसाया और एकीकृत किया जाता है।
4. मिलिट्री का वर्चस्व — व्यापक आंतरिक समस्याएं मौजूद होते हुए भी सरकार सेना का विषम वित्त पोषण करती है. घरेलू एजेंडे की उपेक्षा की जाती है ताकि मिलट्री और सैनिकों का हौंसला बुलंद और ग्लैमरपूर्ण बना रहे.
5. उग्र लिंग-विभेदीकरण — फासीवाद में सरकारें लगभग पुरुष प्रभुत्व वाली होती हैं. फासीवादी शासनों के अधीन, पारंपरिक लिंग भूमिकाओं को और अधिक कठोर बना दिया जाता है. गर्भपात का सख्त विरोध होता है और कानून और राष्ट्रीय नीति होमोफोबिया और गे विरोधी होती है
6. नियंत्रित मास मीडिया – कुछेक मामलों में मीडिया को सीधे सरकार द्वारा नियंत्रित किया जाता है, लेकिन अन्य मामलों में सरकारी नियमों, या प्रवक्ताओं और अधिकारियों द्वारा पैदा की गयी सहानुभूति द्वारा मीडिया को नियंत्रित किया जाता है. सामान्य युद्धकालीन सेंसरशिप विशेष रूप से होती है.
7. राष्ट्रीय सुरक्षा का जुनून – एक प्रेरक उपकरण के रूप में सरकार द्वारा इस डर का जनता के खिलाफ ही प्रयोग किया जाता है.
8. धर्म और सरकार का अपवित्र गठबंधन — फासीवाद के तहत सरकारें एक उपकरण के रूप में बहुसंख्यकों के धर्म को आम राय में हेरफेर करने के लिए प्रयोग करती हैं. सरकारी नेताओं द्वारा धार्मिक शब्दाडंबर और शब्दावली का प्रयोग सरेआम होता है जबकि धर्म के प्रमुख सिद्धांत सरकार और सरकारी कार्रवाईयों के विरुद्ध होते हैं।
9. कारपोरेट पावर संरक्षित होती है – फासीवादी राष्ट्र में औद्योगिक और व्यवसायिक शिष्टजन सरकारी नेताओं को शक्ति से नवाजते हैं जिससे अभिजात वर्ग और सरकार में एक पारस्परिक रूप से लाभप्रद रिश्ते की स्थापना होती है.
10. श्रम शक्ति को दबाया जाता है – श्रम-संगठनों का पूर्ण रूप से उन्मूलन कर दिया जाता है या कठोरता से दबा दिया जाता है क्योंकि फासिस्ट सरकार के लिए एक संगठित श्रम-शक्ति ही वास्तविक खतरा होती है.
11. बुद्धिजीवियों और कला प्रति तिरस्कार – फासीवाद उच्च शिक्षा और अकादमियों के प्रति दुश्मनी को बढ़ावा देता हैं. अकादमिया और प्रोफेसरों को सेंसर करना और यहाँ तक कि गिरफ्तार करना असामान्य नहीं होता. कला में स्वतन्त्र अभिव्यक्ति पर खुले आक्रमण किए जाते हैं और सरकार कला की फंडिंग करने से प्राय: इंकार कर देती है.
12. अपराध और सजा प्रति जुनून – फासीवाद का एक लक्षण यह भी है कि सरकारें कानून लागू करने के लिए पुलिस को लगभग असीमित अधिकार दे देती हैं। पुलिस ज्यादितियों के प्रति लोग प्राय: निरपेक्ष होते हैं यहाँ तक कि वे सिविल आज़ादी तक को देशभक्ति के नाम पर कुर्बान कर देते हैं. फासिस्ट राष्ट्रों में अक्सर असीमित शक्ति वाले विशेष पुलिस बल होते हैं.
13. उग्र भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार — फासिस्ट राष्ट्रों का राज्य संचालन मित्रों के समूह द्वारा किया जाता है जो अक्सर एक दूसरे को सरकारी ओहदों पर नियुक्त करते हैं और एक दूसरे को जवाबदेही से बचाने के लिए सरकारी शक्ति और प्राधिकार का प्रयोग किया जाता है. सरकारी नेताओं द्वारा राष्ट्रीय संसाधनों और खजाने को लूटना असामान्य बात नहीं होती.
14.चुनाव महज धोखाधड़ी होते हैं — कभी-कभी होने वाले चुनाव महज दिखावा होते हैं. विरोधियों के विरुद्ध लाँछनात्मक अभियान चलाए जाते है और कई बार हत्या तक कर दी जाती है , विधानपालिका के अधिकारक्षेत्र का प्रयोग वोटिंग संख्या या राजनीतिक जिला सीमाओं को नियंत्रण करने के लिए और मीडिया का दुरूपयोग करने के लिए किया जाता है
4 comments:
चिन्तनपरक आलेख !
आपको पिता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ...
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चाँद, बादल और शाम | गुलाबी कोंपलें
hamaare desh ki kis party me ye laxan maujood hain?
शरद जी, इस संबंध में मैंने इसी ब्लॉग की इस पोस्ट में लिखा है।
फासीवाद के कारणों को देखते हुए कांग्रेस सहित भारत की हर संसदीय राजनीतिक पार्टी में यह लक्षण हैं, लेकिन आरएसएस और उसका राजनीतिक मुखौटा भाजपा क्लासिक अर्थों में फासीवादी संगठन हैं।
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