जो तटस्‍थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध...

जलती लाशों की चिरायंध हवा में गुम हुए ज़्यादा समय नहीं बीता है, काटती-जलाती उन्‍मादी भीड़ और बलात्‍कृत स्त्रियों की ख़बरों को अखबारों के पन्‍नों से विस्‍थापित हुए अभी ज़्यादा दिन नहीं गुज़रे हैं। चुनावी शोर-शराबे के बीच भी अंधी बर्बरता के इन पुजारियों, लाशों के ढेर पर श्‍मशान-नृत्‍य करने वाले इन कापालिकों की हुंकारें और वहशी मंत्रोच्‍चार एक अशनि संकेत की तरह सुनाई दे रहे हैं।


वे सत्ता में हों, या सत्ता से बाहर, लगातार अपना काम कर रहे हैं। लोगों के दिमाग़ों में ज़हर और दिलों में नफ़रत भरना उनका तरीक़ा है, झूठ और कुत्‍सा-प्रचार उनके सबसे बड़े अस्‍त्र हैं, कुतर्क और गाली-गलौच ही उनका विमर्श है, छल-छद्म-पाखंड और कुत्सित मानवद्रोह उनकी संस्‍कृति है। प्रगतिकामी लोग, मेहनतकश अवाम, स्त्रियाँ, अल्‍पसंख्‍यक, दमित-दलित-उत्‍पीडि़त जातियाँ और समुदाय उनके सबसे बड़े दुश्‍मन हैं...

वे अपने काम में लगे हुए हैं लगातार... लेकिन जो उनके विरुद्ध हैं, जो उनसे कई गुना ज़्यादा हैं, वे ख़ामोश हैं, निष्क्रिय हैं, ख़ुशफ़हमियों के सहारे हैं...


चुनावों में हार से वे ख़त्‍म नहीं हो जाएंगे। संसद में सरकंडे के तीर चलाने और टीवी चैनलों पर गत्ते की तलवारें भाँजने से उनका बाल बाँका नहीं होगा। महज़ महानगरों के गोष्‍ठीकक्षों या मंडी हाउस में फ़ासीवाद के प्रतीकात्‍मक विरोध से उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा। ठंडे, निष्क्रिय, सुंदर-सुव्‍यवस्थित विरोध की नहीं, इनके विरुद्ध चौतरफा प्रत्‍याक्रमण की ज़रूरत है। व्‍यापक समाज में, तृणमूल स्‍तर तक जाकर इनकी असलियत को नंगा करना होगा। विचार, राजनीति, कला-साहित्‍य-संस्‍कृति हर स्‍तर पर इन शक्तियों और इनके प्रत्‍यक्ष और प्रच्‍छन्‍न प्रवक्‍ताओं से टकराना होगा। उनके झूठ के भ्रमजाल को काटना होगा...



साइबर जगत में हिटलर और मुसोलिनी के इन मानसपुत्रों की धमाचौकड़ी कुछ ज़्यादा ही बेरोकटोक है। इंटरनेट साइटों और ब्‍लॉगों पर ये लगातार अपना झूठ-पुराण फैलाते रहते हैं और अपना कूपमंडूकी दकियानूसी राग अलापते रहते हैं। इन्‍हें चुभने वाली कोई भी सच्‍ची, प्रगतिशील, जनपक्षधर बात सामने आते ही ये उस पर टूट पड़ते हैं और अपनी कौआ-रोर से उसे चुप कराने की कोशिश में जुट जाते हैं। ज़्यादातर लोग ''इनके मुँह कौन लगे?'' वाले अंदाज़ में अपनी शालीनता और भद्रता को सीने से लगाए चुपचाप किनारा कर जाते हैं।


हिन्‍दुत्‍ववादी शक्तियाँ सरकारी तंत्र, संघ परिवारी संगठनों के नेटवर्क, अफ़वाहों, संघी घुसपैठ वाले मीडिया और धर्म की आड़ में चलाए जाने वाले तमाम कार्यक्रमों के ज़रिए समाज में अपने ज़हरीले बीज छींटती रहती हैं जबकि इनके झूठे प्रचारों का जो जवाब दिया भी जाता है वह महज़ पढ़ी-लिखी आबादी के छोटे-से हिस्‍से में सीमित रह जाता है। इसका भी बड़ा हिस्‍सा अंग्रेज़ी में होता है। अब इन्‍होंने नए मीडिया यानी इंटरनेट को भी अपने विषैले प्रचार का ज़रिया बना लिया है। दिलचस्‍प बात ये है कि विज्ञान और वैज्ञानिकता की घोर विरोधी ये शक्तियाँ आधुनिक टेक्‍नोलॉजी का इस्‍तेमाल करने में कतई पीछे नहीं हैं। चाहे ये हमारे यहाँ के भगवापंथी फ़ासिस्‍ट हों या फिर अमेरिका के पैदा किए हुए तालिबानी कट्टरपंथी।



अब वक्‍़त आ गया है कि इनके हर झूठ को तार-तार और इनके हर कुतर्क को ध्‍वस्‍त ही नहीं किया जाए बल्कि इनकी विचारधारा, इनके काले मंसूबों, इनके शर्मनाक इतिहास और इनके धर्मध्‍वजाधारियों के चाल-चेहरे-चरित्र को बेपर्दा किया जाए। इतिहास को आगे ले जाने की चाहत और वक्‍़त के पहिए को उल्‍टा घुमाने की कोशिशों के बीच मज़बूती से अपना पक्ष चुना जाए।


यह ब्‍लॉग इसी कोशिश का एक हिस्‍सा है। हम समान सोच वाले सभी ब्‍लॉगरों से, और सभी लेखक, पत्रकार, संस्‍कृतिकर्मी, ऐक्टिविस्‍ट मित्रों से, और सभी प्रबुद्ध, संवेदनशील व्‍यक्तियों से आग्रह करेंगे कि इस मुहिम में हमारे साथ शामिल हों।



हमारी कोशिश होगी कि हम फ़ासीवाद के उभार की राजनीतिक-आर्थिक-वैचारिक जड़ों को सामने लाएं, फ़ासीवादी विचारधारा, राजनीति और संगठनों को उजागर करें, उनके कारनामों का पर्दाफाश करें, उनके फैलाये कुप्रचारों को तर्कों और तथ्‍यों से ग़लत साबित करने के साथ-साथ दुनियाभर में फ़ासीवाद के विरुद्ध कवियों-लेखकों-विचारकों के लेखन को सामने लाएं, इस विषय पर ऑडियो-वीडियो सामग्री या उसके परिचय को एक जगह एकत्रित करें, फ़ासीवाद के विरुद्ध व्‍यापक अवाम के संघर्ष के इतिहास को सामने लाएं। इसके साथ ही धर्म और सांप्रदायिकता के अंतर को स्‍पष्‍ट करने, धर्म के वैज्ञानिक भौतिकवादी नज़रिए पर चर्चा करने, सेकुलरिज़्म के सवाल पर बहस चलाने की भी हमारी कोशिश होगी। बेशक, विरोधी विचारों के लिए इसमें स्‍थान प्रतिबंधित नहीं है। लेकिन बहस तर्कों से होनी चाहिए, गाली-गलौच से नहीं।

18 comments:

manjula said...

सराहनीय प्रयास

Kapil said...

संदीप जी, एकदम जरूरी काम का बीड़ा आपने उठाया है। इस ब्‍लॉग पर क्‍या हम लिख सकते हैं।

nagarjuna said...

Kalal ki dhaar deekh rahi hai...achchhi shuruaat ke liye badhaaii..

nagarjuna said...

Kalal ki dhaar deekh rahi hai...achchhi shuruaat ke liye badhaaii..

Reyazul Haque said...

zaree rakhen, hum sab saath hain har morche par.

Sanjay Grover said...

बहस तर्कों से होनी चाहिए, गाली-गलौच से नहीं।
BAAT TO THIK HI HAI.

mastkalandr said...

देश में अवसरवादियों और दोगले लोगों की कमी नही
स्वार्थ की रोटी सेक रहे है ऐसे कुछ देश चलानेवाले
हम सब आपके साथ है मित्र ..
दरिया है हम अपना हुनर जानते है ,
गुजरेंगे जहा से रास्ता बन जायेगा .
आपका स्वागत है ..,हमारी सुभकामनाए सदा आपके साथ है ..मक्

दिनेशराय द्विवेदी said...

संदीप आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ। इस अभियान में मैं आप के साथ हूँ।
आप ने बहुत जरूरी काम हाथ में लिया है। जारी रखें। सहयोग जैसा भी चाहें बिना झिझक कहें।

रचना गौड़ ’भारती’ said...

हिम्मत लगन और विश्वास की सदा जीत होती है। आपने अच्छा लिखा मेरे ब्लोग पर आने की जहमत उठाए। आपका स्वागत है

रचना गौड़ ’भारती’ said...

हिम्मत लगन और विश्वास की सदा जीत होती है। आपने अच्छा लिखा मेरे ब्लोग पर आने की जहमत उठाए। आपका स्वागत है

जयंत - समर शेष said...

"चाहे ये हमारे यहाँ के भगवापंथी फ़ासिस्‍ट हों या.."
"हिन्‍दुत्‍ववादी शक्तियाँ सरकारी तंत्र, संघ परिवारी संगठनों के नेटवर्क, अफ़वाहों, संघी घुसपैठ वाले मीडिया और धर्म की आड़ में चलाए जाने वाले तमाम कार्यक्रमों के ज़रिए समाज में अपने ज़हरीले बीज छींटती रहती हैं .."




कितनी आसानी से आप केवल भगवा को ही निशाना बनाते हैं...
नाम लेते हैं बर्बरता का और केवल एक ही को निशाना बनाते हैं??
क्यों छुप छुप कर सिर्फ एक पर ही तीर चलाते हैं??
क्यों नहीं हरे और सफ़ेद के पीले काले कारनामों के बारे में बताते हैं??
जो बात सच है, उसे हर दम क्यों आप झुठलाते हैं??

सच का नाम लेते हैं तो सच ही बोलें...

~जयंत

दिल दुखता है... said...

हिंदी ब्लॉग की दुनिया में आपका तहेदिल से स्वागत है....

Anonymous said...

पहले वे यहूदियों के लिए आये और मैं कुछ नहीं बोला क्योंकि मैं यहूदी नहीं था...फिर वे कम्युनिस्टों के लिए आये और मैं कुछ नहीं बोला क्योंकि मैं कम्युनिस्ट नहीं था.....फिर वे ट्रेडयूनियन वालों के लिए आये और मैं कुछ नहीं बोला क्योंकि मैं ट्रेडयूनियन में नहीं था....फिर वे मेरे लिए आये और तब कोई नहीं था जो मेरे लिए बोलता.
-हिटलर के दौर में जर्मनी के कवि पास्टर निमोलर.
कपिल जी और द्विवेदी जी की तरह हम भी हरसंभव सहयोग का वादा करते हैं.

naveen prakash said...

संदीप जी,
यह मात्र एक शुरुआत नहीं बल्कि हम जैसे इंसाफपसंद और नौजवानों को आह्वान भी है. हमें अपने कारवें का अग्रणी साथी समझिये.

MAYUR said...

अच्छा विश्लेषण , सुंदर अभिव्यक्ति,अच्छी जानकारी


यूँ ही लिखते रही हमें भी उर्जा मिलेगी ,

धन्यवाद
मयूर
अपनी अपनी डगर

Dr. Amar Jyoti said...

@जयन्त जी! फ़ासीवाद हर रंग में फ़ासीवाद ही होता है। आलेख में तो तालिबानों का नाम भी लिया गया है हिन्दुत्ववादी फ़ासिस्टों के साथ।

अमरनाथ 'मधुर'امرناتھ'مدھر' said...

मुझे खेद है आपके ब्लॉग का परिचय देर से मिला|हर कदम पर मैं आपके साथ हूँ |

mauli said...

Aur AISA nahi hai KI padosi mulk ke Saatchi log bhi bhagava word ko Bahutayat mein use karte HAIN. Waha bhi kattarpanthiyon ko talibaani hi kehten hain