ए जी नूरानी
(साभार : फ्रंटलाइन)
पुस्तक समीक्षा
गोडसेज़
चिल्ड्रेन
हिंदुत्व टेरर इन इंडिया
हिंदुत्व टेरर इन इंडिया
सुभाष गाताड़े
फ़रोज़ मीडिया, नई दिल्ली
400 पृष्ठ / रु 360
संघ परिवार की तमाम करतूतों
में आतंक कभी भी अनुपस्थित नहीं रहा है। सांप्रदायिक दंगों में राष्ट्रीय स्वयं
सेवक संघ की लिप्तता को जांच आयोगों ने बारंबार चिन्हित किया है। भगवा आतंक के
हालिया उभार के बाद भारतीय जनता पार्टी द्वारा की गयी बचाव की कोशिशों ने उसे पूरी
तरह नंगा कर दिया है।
प्रशिक्षण से एक इंजीनियर और स्वतंत्र
पत्रकार सुभाष गाताड़े ने सांप्रदायिकता और दलित मुक्ति के मुद्दों पर काफी कुछ
लिखा है। उन्होंने भगवा आतंक के प्रमाण को एक किताब में समेटकर एक सेवा की है।
दस
जनवरी को संघ के मुखिया मोहन भागवत ने सफाई देते हुए कहा कि ‘‘सरकार ने जिन लोगों पर आरोप लगाये हैं (विभिन्न बम
विस्फोटों के मामलों में) उनमें से कुछ तो स्वयं संघ को छोड़कर चले गये थे और
कुछ को संघ ने यह कहकर निकाल दिया था कि उनके चरमपंथी विचार संघ में नहीं चलेंगे।’’ ऐसे में यह उनका कानूनी दायित्व बन जाता है कि वह उन लोगों के नाम
बतायें जिन्होंने या तो अपनी मर्जी से संघ को छोड़ा या जिनको संघ से चले जाने को
कहा गया। इससे हम यह जान सकते हैं कि पुलिस द्वारा दायर किये गये किन मुकदमों में
इन ‘’पूर्व’’ संघ कर्मियों का नाम आता
है।
लेखक
इस पुस्तक के केंद्रीय बिंदु को बताते हुए कहते हैं,
‘‘ इस पुस्तक के अच्छे खासे हिस्से में हिंदुत्ववादी
संगठनों द्वारा देश के विभिन्न हिस्सों में की गयी आतंकी कार्रवाहियों की चर्चा
की गयी है। यह बहुसंख्यकवादी आतंकी गिरोहों के व्यापक फैलाव के बारे में इंगित
करती है जो किसी भी स्थान पर मनचाहे तरीके से हमला करने में सक्षम हैं और साथ ही
साथ यह पुस्तक यह भी स्पष्ट करती है कि यह अब महज़ क्षेत्रीय परिघटना नहीं रही
है। दूसरे यह इन आतंकी गिरोहों की कार्रवाहियों में समानताओं को भी उजागर करती है।
तीसरे यह जांच एजेंसियों के सामने आने वाली अत्यन्त चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारियों
को भी रेखांकित करती है क्योंकि उन्होंने अब तक अपने आप को बम रखने वाले व्यक्तियों
और उनको शरण देने वाले और उनको वित्तीय व अन्य मदद करने वाले स्थानीय लोगों की
धरपकड़ तक ही सीमित रखा है, जबकि इस आतंकी परियोजना के किसी
भी मास्टरमाइंड, योजनाकर्ता, वित्तीय
सहायककर्ता और विचारक को पकड़ने में अभी
तक नाकाम रही है’’।
दो अध्यायों को छोड़कर जिनमें हिंदुत्व
आतंक के वैश्विक आयाम और ‘मोस्साद’ परिघटना की चर्चा है, पुस्तक का केंद्र बिंदु मुख्य
तौर पर भारत तक ही सीमित है। ऐसे में जब विभिन्न हिंदुत्ववादी गिरोहों ने अन्तर्राष्ट्रीय
नेटवर्क और संपर्क बना रखे हैं, जिनकी वजह से उनके कामों में
कई किस्म की मदद मिल जाती है, इस परिघटना के इस पहलू पर और
भी ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है। इसके अलावा हमें यह भी समझना होगा कि खुले
आम राजनीतिक और सांस्कृतिक ग्रुपों के अतिरिक्त तमाम आध्यात्मिक गुरुओं ने थोक
के भाव से अपने अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क खोले हैं और यह बात किसी से छुपी नहीं है
कि ऐसे ग्रुप सशस्त्र हिंदुत्व ग्रुपों से करीबी सम्बन्ध रखते हैं।
‘‘स्थिति में नाटकीय मोड़ तब आया जब 2008 में मालेगांव
में बम विस्फोट हुआ और कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के गठजोड़ वाली महाराष्ट्र
सरकार ने राज्य के एंटी टेररिज़्म स्क्वाड (ए टी एस) को जांच की जिम्मेदारी
सौंपी। ए टी एस प्रमुख हेमंत करकरे जिन्होंने कुछ महीनों पहले (अप्रैल 2008) थाणे
और पनवेल में हुए बम विस्फोटों के सिलसिले में सनातन संस्था के कुछ आतंकवादियों
को पकड़ने में सफलता प्राप्त की थी, ने मामले को उसी उत्साह
से लिया। एक जद्दोजहद भरी जांच के बाद उन्होंने यह सनसनीखेज खुलासा किया कि आर एस
एस और सहयोगी हिंदुत्ववादी संगठनों के सदस्य देश के अलग-अलग हिस्सों में आतंकी
मॉड्यूल चला रहे हैं और यहां तक कि उन्होंने सेना में भी अपनी पैठ बना ली है।’’
भाजपा
और संघ ने उनको बदनाम करने की साजिशों का राग अलापना शुरू किया। इस पुस्तक में
उनके झू्ठों के साथ-साथ और भी खुलासे किये गये हैं। इस प्रक्रिया में लेखक नें कुछ
महत्वपूर्ण बिन्दु उठाये हैं। ‘‘कोई कह सकता है कि
धर्मनिरपेक्षवादियों का एप्रोच राज्य केंद्रित है, यह न सिर्फ सांप्रदायिकता से
लड़ने में राज्य की भूमिका पर ज़ोर देता है बल्कि राज्य के सम्मुख कुछ मांगें
भी रखता है , यह राज्य से सांप्रदायिक संगठनों पर पाबंदी लगाने और
संवैधानिक अधिकारों के हनन के खिलाफ़ सख़्त कार्रवाही करने और वैज्ञानिक सोच को प्रचारित करने आदि की गुहार लगाता है। यह एप्रोच राजनीति के धर्मनिरपेक्षीकरण के सवाल
को नहीं उठाता है। हलांकि यह मुखर शब्दों में कहा नहीं जाता लेकिन प्रभावी रूप से
होता यह है कि सामाजिक निर्वात धार्मिक तथा सांप्रदायिक संगठनों और गैर सरकारी
संगठनों और यथास्थितिवादी संगठनों के लिए खुला छोड़ दिया जाता है। स्पष्ट है कि
यह एप्रोच इस संभावना की कल्पना भी नहीं करता कि राज्य सांप्रदायिक शक्तियों
के हाथों में आ सकता है (तब उन्हें कानून बनाने, और नियमों को
तोड़ मरोड़ कर हिंदुत्व को ही एक प्रकार का लोकतंत्र बनाने की खुली छूट होगी।)’’
(अनुवाद : आनंद)
5 comments:
लेखक का सही नाम है: सुभाष गाताडे.कृपया ठीक कर लें.
बेहतर...
हिंदी में भी आ ही जाएगी...
आप हिंदू कहानेके लायक नाही है!
Islam is an ideology of world domination through fear and force.
i have read this book
total crap
it's better u read the conspiracy theories on wikipedia.
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