प्रशांत
बिहार
में
नीतीश
कुमार
सरकार
के
''सुशासन''
की
पूँजीवादी
मीडिया
में
चारों
ओर
चर्चा
है।
लेकिन
इसका
असली
चेहरा
कितना
ख़ूनी
और
बर्बर
है
यह
उनकी
पुलिस
ने
फार्बिसगंज
में
दिखा
दिया।
बिहार
में
नये
आर्थिक
और
सामाजिक
विकास
की
गाड़ी
पर
कौन
सवार
हैं
और
किसे
रौंदती
हुई
यह
आगे
बढ़
रही
है,
यह
भी
इस
घटना
ने
साफ़
कर
दिया
है।
पिछली
3 जून
को
अररिया
ज़िले
के
फ़ार्बिसगंज
मण्डल
के
भजनपुर
गाँव
में
एक
कारख़ाना
मालिक
की
शह
पर
पुलिस
ने
इन्सानियत
को
शर्मसार
करने
वाला
बर्बरता
का
ऐसा
ताण्डव
किया
जिसकी
मिसाल
आज़ाद
भारत
में
जल्दी
नहीं
मिलेगी।
इस
छोटे-से
गाँव
की
लगभग
पूरी
आबादी
मुस्लिम
है
और
ज़्यादातर
लोग
आसपास
के
बाज़ार
में
और
बड़े
फ़ार्मरों
के
खेतों
पर
दिहाड़ी
मज़दूर
के
रूप
में
काम
करते
हैं।
1984 में
बिहार
औद्योगिक
क्षेत्रा
विकास
प्राधिकरण
(बियाडा)
ने
गाँव
की
105 एकड़
ज़मीन
अधिग्रहीत
की
थी
जिसमें
अधिकांश
गाँववालों
की
ज़मीन
छिन
गयी
थी
और
बदले
में
उन्हें
बहुत
ही
मामूली
मुआवज़ा
देकर
टरका
दिया
गया
था।
इस
गाँव
को
नज़दीकी
मार्केट,
ईदगाह,
अस्पताल
और
कर्बला
से
जोड़ने
वाली
एकमात्र सड़क
थी
जो
1962 में
बनायी
गयी
थी।
लेकिन
नीतीश
सरकार
के
आदेश
से
बियाडा
ने
पिछले
साल
जून
में
इस
सड़क
सहित
रामपुर
और
भजनपुर
गांवों
के
बीच
की
सारी
ज़मीन
ऑरो
सुन्दरम
इण्टरनेशनल
कम्पनी
को
मक्का
से
स्टार्च
बनाने
की
फ़ैक्टरी
स्थापित
करने
के
लिए
आवण्टित
कर
दी।
इस
कम्पनी
के
डायरेक्टरों
में
से
एक
भाजपा
के
एम.एल.सी. अशोक
अग्रवाल
का
बेटा
सौरभ
अग्रवाल
भी
है।
बियाडा
के
इस
निर्णय
के
विरोध
में
गाँव
वालों
ने
एस.डी.ओ. को
अपना
शिकायत
पत्र
सौंपकर
सड़क
बन्द
न
करने
की
अपील
की
थी,
क्योंकि
ऐसा
होने
पर
दिहाड़ी
पर
खटने
वाले
इन
मज़दूरों
को
रोज़
काम
की
तलाश
में
मार्केट
तक
पहुँचने
के
लिए
5-7 किलोमीटर
की
अतिरिक्त
दूरी
तय
करनी
पड़ती।
मामले
को
सुलझाने
के
लिए
1 जून
2011 को
कम्पनी
अधिकारियों,
प्रशासन
और
मुखिया
समेत
गाँववालों
के
बीच
एक
मीटिंग
हुई
थी
जिसमें
गाँववालों
ने
इस
शर्त
पर
सड़क
पर
अपना
अधिकार
छोड़ने
की
लिखित
रूप
से
हामी
भर
दी
थी
कि
फ़ैक्टरी
के
दक्षिण
की
ओर
से
एक
सड़क
निकाल
दी
जाये।
लेकिन
अगले
ही
दिन
2 जून
को
कम्पनी
ने
भारी
पुलिस
बल
की
मौजूदगी
में
ईंट
और
कंक्रीट
की
दीवार
बनाकर
सड़क
को
बन्द
कर
दिया
और
पास
का
एक
छोटा
पुल
भी
ध्वस्त
कर
दिया।
यह
ख़बर
गाँव
में
फैलते
ही
लोगों
को
लगा
कि
कम्पनी
ने
उनके
साथ
धोखा
किया
है
और
उनका
गुस्सा
फूट
पड़ा।
भजनपुर
और
रामपुर
गाँव
के
निवासियों
ने
सड़क
बन्द
किये
जाने
के
विरोध
में
प्रदर्शन
करना
शुरू
कर
दिया
और
कम्पनी
द्वारा
बनायी
गयी
दीवार
को
ढहा
दिया।
गाँववालों
के
इस
तथाकथित
उग्र
प्रदर्शन
को
रोकने
के
लिए
मौक़े पर
मौजूद
एस.पी. गरिमा
मलिक
ने
प्रदर्शनकारियों पर
सीधे
फ़ायरिंग
का
आदेश
दे
दिया।
मृतप्राय मुस्तफ़ा के चेहरे पर कूदता वहशी पुलिसवाला सुनील कुमार। इस हैवानियत की सजा के तौर पर बस उसका तबादला कर दिया गया। |
आदेश
मिलते
ही
पुलिस
ने
निर्दोष
गाँववालों
को
सबक़
सिखाने
के
लिए
अपनी
हैवानियत
और
वहशीपन
का
जो
रूप
दिखाया,
उसके
दृश्यों
को
देखकर
रूह
काँप
उठती
है।
पुलिस
ने
गाँववालों
को
उनके
घरों
तक
खदेड़-
खदेड़कर
मारा।
18 वर्षीय
मुस्तफ़ा
अंसारी
को
पुलिस
ने
चार
गोलियाँ
मारीं
जिससे
वह
मृतप्राय
अवस्था
में
ज़मीन
पर
गिर
पड़ा।
लेकिन
इतने
से
उनकी
हैवानियत
शान्त
नहीं
हुई।
सुनील
कुमार
नाम
का
पुलिसवाला
ज़मीन
पर
पड़े
अधमरे
मुस्तफ़ा
के
चेहरे
पर
कूद-कूदकर
अपने
पैरों
से
उसे
कुचलने
और
अपने
बूटों
से
उस
पर
पागलों
की
तरह
प्रहार
करने
लगा
जबकि
वहाँ
खड़े
पुलिस
वालों
से
लेकर
प्रशासनिक
अधिकारी
तक
सबके
सब
तमाशबीन
की
तरह
देखते
रहे।
पुलिस
फ़ायरिंग
का
शिकार
दूसरा
शख़्स
मुख्तार
अंसारी
था
जिसे
सिर
में
तीन
और
एक
गोली
जाँघ
में
लगी।
पगलाई
पुलिस
ने
गर्भवती
माँ
और
सात
माह
के
बच्चे
तक
को
नहीं
बख्शा।
6 माह
की
गर्भवती
शाज़मीन
खातून
को
6 गोलियों
(चार
सिर
में)
से
छलनी
करने
के
बाद
पुलिस
के
एक
सिपाही
ने
ज़मीन
पर
पड़ी
लाश पर
राइफ़ल
की
बट
से
वार
कर
उसके
सिर
को
फाड़
डाला
और
उसका
दिमाग़
बाहर
आ
गया।
7 माह
के
नौशाद
अंसारी
की
दो
गोलियाँ
लगने
से
मौत
हो
गयी।
इसके
अलावा
फ़ायरिंग
में
आधा
दर्जन
से
भी
अधिक
लोग
घायल
हुए।
मरनेवालों
में
सभी
मुस्लिम
थे।
घटना
के
बाद
गाँव
में
गये
एक
जाँच
दल
को
गाँववालों
ने
बताया
कि
29 मई
को
राज्य
के
उप-मुख्यमन्त्री
भाजपा
के
सुशील
मोदी
ने
फ़ार्बिसगंज
का
दौरा
कर
वहाँ
के
प्रशासन
पर
दबाव
डाला
था
कि
जल्द
से
जल्द
सड़क
को
बन्द
कर
फ़ैक्टरी
का
निर्माण
कार्य
शुरू
करने
का
रास्ता
साफ़
करें।
3 जून
की
घटना
के
प्रत्यक्षदर्शियों के
मुताबिक़
उस
दिन
ख़ुद
भाजपा
विधायक
अशोक
अग्रवाल
ने
पुलिस
वाले
से
पिस्तौल
लेकर
गाँव
वालों
पर
फ़ायरिंग
की
और
कहा
कि
''इनको
पिंजरे
में
बन्द
कर
देंगे,
जेल
बना
देंगे
सालों
के
गाँव
को।''
ये
दबंगई
और
बेशर्मी
की
पराकाष्ठा
ही
है
कि
सारे
साक्ष्य
होने
और
घटना
के
अगले
ही
दिन
इस
बर्बर
पुलिस
दमन
का
वीडियो
एक
लोकल
समाचार
चैनल
पर
दिखाये
जाने
के
बावजूद
कांस्टेबल
सुनील
कुमार
के
तबादले
के
अलावा
अन्य
किसी
भी
पुलिस
अधिकारी,
प्रशासनिक
अधिकारी,
कम्पनी
अधिकारी
या
अशोक
अग्रवाल
पर
कोई
कार्रवाई
नहीं
की
गयी
और
न
ही
मृतकों
या
घायलों
को
(नौशाद
अंसारी
के
पिता
को
छोड़कर)
कोई
मुआवज़ा
ही
दिया
गया।
इसके
उलट
नीतीश
सरकार
और
प्रशासन
गाँववालों
के
प्रदर्शन
को
उग्र
ठहराकर
पुलिस
की
इस
घिनौनी
कार्रवाई
को
जायज़
करने
की
कोशिश
करते
रहे।
फ़ार्बिसगंज की घटना बिहार में नीतीश शासन के दौरान ग़रीब किसानों व मज़दूरों के बर्बर पुलिस दमन की कोई अकेली घटना नहीं है। अपना हक़ माँगने वाले ग़रीब किसानों, मज़दूरों, सरकारी कर्मचारियों, अध्यापकों आदि पर सरकार की लाठियाँ-गोलियाँ बार-बार बरसती रही हैं। मीडिया में अपनी छवि चमकाने के लिए नीतीश कुमार चाहे जितने करोड़ ख़र्च कर लें, फ़ार्बिसगंज के ख़ून के छींटे उनके चेहरे से मिटने वाले नहीं हैं।
निम्नलिखित हिस्सा सरोकार डॉट नेट से साभार लिया गया है:
घटना में पुलिस फायरिंग
में मारे गए 20 वर्षीय मुख्तार अंसारी ट्रक पर हेल्पर का काम करते थे।
‘‘घटना के समय वह छुट्टी पर घर आ रहा था। रास्ते में पुलिस वालों ने उसे
गोली मार दी।’’ मृतक मुख्तार के पिता फारुक अंसारी आगे कहते हैं कि ‘घटना
के बाद हम लोग डर कर छिप गए थे। पुलिस लाशों को जीप में रख कर पोस्टमार्टम
के लिए ले गई। विधायक जाकिर हुसैन के आने पर पुलिस ने फायरिंग बन्द की।’
घटना के बाद से ही मुख्तार की मां अपने होशो-हवास खो चुकी हैं।
मोहम्मद अनवारुल घटना के सम्बन्ध मे बताते
हैं कि ‘पुलिस हाइवे पर चढ़ कर गांव में घुसने ही जा रही थी। विधायक के
आने के बाद पुलिस वाले पीछे हट गए। विधायक के हस्तक्षेप से ही हम लोगों की
मिट्टी मिली। घटना के बाद अधिकतर पुरुष गांव छोड़ कर भाग गए थे। गोली चलने
के बाद पुलिस वाले और कम्पनी के लोगों ने निर्माणाधीन फैक्ट्री की कुछ
मशीनों में आग लगा दी और कागज में दिखाया कि गांव वालों ने लगाई है।’
घटना के पश्चात् आरो
सुन्दरम के निदेशक अशोक कुमार चैधरी द्वारा तीन हजार अज्ञात लोगों पर एवं
सुनील कुमार गुप्ता, पर्यवेक्षक, प्रखण्ड सांख्यिकि विभाग द्वारा एक हजार
अज्ञात लोगों पर मुकदमा दर्ज कराया गया। पुलिस ने इन अज्ञात लोगो पर
धारा-147, 148, 149, 379, 436, 452, 427, 307, 323, 303, 324, 41, 342,
325, 337, 353, 333, 532 ,479, 004, और 120 (बी) आई.पी.सी. तथा 27 आर्म्स
एक़्ट के अंतर्गत मुकदमा दर्ज किया है।
घटना के पीडि़तों का विवरण
क्रम सं0 नाम पिता/पति का नाम उम्र पता प्रभाव 1 नौशाद 7 माह भजनपुर मृत 2. शाजमिन फारुख अंसारी 25 वर्ष +7 माह का गर्भ भजनपुर मृत 3 मुस्तफा फटकन अंसारी 20 वर्ष भजनपुर मृत 4 मुख्तार अंसारी फारुख अंसारी 20 वर्ष भजनपुर मृत 5 रईश अंसारी अम्सुल 35 वर्ष भजनपुर घायल जबडा पर गोली 6 रेहाना खातुन सदिक अंसारी 22 वर्ष भजनपुर बाह में गोली 7 एकराम अंसारी डोमी अंसारी 30 वर्ष भजनपुर पैर मे गोली 8 एबादुल अंसारी लतीफ अंसारी 55 वर्ष भजनपुर पैर मे गोली 9 मंजुर अंसारी आले रसुल 8 भजनपुर गर्दन मे गोली 10 कालमुन खतुन अंसारी जहीर अन11 भजनपुर पीठ पर छुती हुई 11 मुजाहिर अमसुल अंसारी 24 भजनपुर पैर पे गोली 12 सलामत अंसारी हशीर 14 भजनपुर सर को छूती हुई 13 जुबैश अजीम 15 भजनपुर सर को छूती हुई
निष्कर्ष
- भजनपुर गांव मे 2000 की आबादी मे मात्र 7-8 मकान ही पक्के है। बाकी मड़ई है।
- भजनपुर मे सिर्फ मुस्लिम समुदाय के लोग रहते है ।गरीबी हर घर और चेहरे पर नजर आती है ।
- विवाद की वजह आरो सुन्दरम कम्पनी द्वारा ग्रामीणो के मुख्य रास्ते को जबरदस्ती बन्द करना है।
- अररिया प्रशासन द्वारा मामला सुलझाने की कोई कोशिश नही की गयी। गरीब अल्पसंख्यको की समस्या को सरकार द्वारा कोई तव्वजो नहीं दिया गया।
- पुलिस और कम्पनी द्वारा रास्ता बन्द करने की कोई सूचना नहीं दी गयी थी। प्रशासन ने वैकल्पिक रास्ता नहीं निकाला।
- प्रशासन और कम्पनी द्वारा सुझाया रास्ता नेशनल हाईवे से होकर जाता है जो 7-8 किमी पडता है।गांव के ज्यादातर लोगो के पास आने– जाने का साधन नही है, वे पैदल ही जाते है।
- अररिया प्रशासन द्वारा राजनैतिक दबाव मे अल्पसंख्यको पर एकतरफा कार्यवाही की गयी।
- पुलिस द्वारा बिरोध कर रहे लोगो को कोई चेतावनी नही दी गयी। पुलिस ने आते ही सीधे फायरिंग शुरु कर दी।
- पुलिस ने भीड़ को हटाने के लिए रबर की गोली, आंसू गैस के गोले या पैरो को निशाना नहीं बनाया। इससे स्पष्ट होता है की पुलिस ने सीधे काउंटर किया है। पुलिस द्वारा लोगो के सिर और सीने के पास मे गोली मारी गई है जो इरादतन हत्या है। पुलिस ने बृज पर चढ कर सीधे बच्चो और औरतों पर फायरिंग की।
- अररिया प्रशासन और कम्पनी ने मामले को सुलझाने के बजाय दहशत से दबाने की कोशिश की है।
- उच्च अधिकारियो की उपस्थिति में गोली से घायल युवक को चिकित्सकीय सुविधा उपलब्ध कराने के बजाय उसके ऊपर कूदा और पीटा गया।
- घायलों को (नौशाद व मुस्तफा) बचाने की कोई कोशिश नहीं की गई। उन्हें एम्बुलेंस की बजाय जीप मे लाद कर ले जाया गया।
- रास्ते में आ रहे लोगों को (रेहाना, नौशाद तथा शाजमिन) को जानबूझ कर गोली मारी गई।
- पुलिस ने गर्भवती महिला शाजमिन को 6 गोली मारी है, शाजमिन के साथ ही गर्भ मे पल रहा 7 माह का शिशु भी मर गया।
- घटना के बाद कम्पनी के लोगों खुद ही मशीनों मे आग लगाई तथा फैक़्ट्री मे तोड़फोड़ की गई।
- घटना के बाद जिला और राज्य प्रशासन का कोई भी अधिकारी घटनास्थल पर नहीं गया। गृह सचिव, पुलिस महानिदेशक सिर्फ फारबिसगंज तहसील और कम्पनी तक ही गए, पर 200 मीटर की दूरी पर मौजूद पीडि़त परिवारो और गांव वालों से नहीं मिले।
- घटना के मृतकों और घायलों को सरकार की तरफ से कोई मुआवजा नहीं मिला, जिससे वह अपना इलाज करा सके। मात्र नौशाद के परिवार को तीन लाख मुआवजा मिला है।
- चार लोगों की हत्या और नौ लोगों पर जानलेवा हमले के बाद भी सुनील यादव को छोड़ कर किसी पर कोई कार्यवाही नहीं की गई।
- लोगों मे दहशत फैल गई है, ज्यादातर युवक गांव छोड़ कर बाहर चले गए हैं।
- एक ही घटना के संदर्भ में सरकारी कर्मचारी सुनील गुप्ता ने 1000 लोगों के खिलाफ एफआईआर तो अशोक चौधरी (कम्पनी निदेशक) ने 3000 अज्ञात लोगो पर मुकदमा दर्ज किया है जो आपस में विरोधाभासी है।
- गांव वालो की एफआईआर नहीं लिखी गई और उन्हें थाना प्रभारी अनिल कुमार गुप्ता ने थाना- फारबिसगंज भगा दिया।
- अररिया प्रधानमंत्री के 15 सूत्री अल्पसंखयक कल्याण के अंतर्गत आता है।
- सरकार द्वारा जमीन अधिग्रहण के बाद 26 साल तक कोई उपयोग नही किया गया।
मांग
- घटना में शामिल जनप्रतिनिधि अशोक अग्रवाल की विधान परिषद की सदस्यता तत्काल रद्द की जाए और हत्या का मुकदमा दर्ज कर तत्काल कार्यवाही की जाय।
- कम्पनी आरो सुन्दरम के निदेशक अशोक चौधरी, सौरभ अग्रवाल, कम्पनी के सुरक्षा गार्डो पर ह्त्या का मुकदमा दर्ज कर तत्काल गिरफ्तार किया जाए।
- बिहार पुलिस की एसपी गरिमा मलिक और फायरिंग मे शामिल सभी पुलिस वालों को बर्खास्त कर हत्या का मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई की जाए।
- जिलाधिकारी और एसडीओ को तत्काल कार्यमुक्त कर हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाय।
- सरकार द्वारा जमीन अधिग्रहण के बाद 26 साल तक उपयोग नही किया गया, लिहाजा जमीन का अधिग्रहण तत्काल रद्द किया जाय या वर्तमान दर से लोगों को मुआवजा दिया जाए।
- उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी पर घटना की संलिप्तता की जांच कर मुकद्दमा दर्ज किया जाए और इस जिम्मेदार पद से हटाया जाए।
- मृतकों के परिवार वालो को 10 लाख रुपए और घायलों को 5 लाख रुपए और चिकित्सकीय खर्च दिया जाय।
- मामले की निष्पक्ष जांच अल्पसंख्यक आयोग, उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एवं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से कराई जाए।
- पीडि़तों पर से गंभीर मुकदमे वापस लिए जाएं।
- ग्रामीणों को आजीविका के साधन उपलब्ध कराए जाएं।
- प्रधानमंत्री की 15 सूत्री अल्पसंख्यक कल्याण योजना के अंतर्गत कार्रवाई की जाए।
मुख्तार के माता-पिता |
लोकतांत्रिक राष्ट्र मे गर्भ
मे पल रहे शिशु और मां की, 7 माह के बालक की और गोली से घायल युवक के उपर
कूद कर निर्मम हत्या के बाद जिला प्रशासन का यह कृत्य और राज्य सरकार की
घटना का नजरन्दाज करना आने वाले समय मे समाज को बांटने तथा नक़्सली वारदातों
को बढावा देगा। देश शर्मिन्दा है, दोषियो को अतिशीघ्र सजा मिलने से ही
न्याय होगा, अन्यथा सजा मे हो रही देर किसी भी अपराध से भी बडा़ अपराध
होगा। उम्मीद है लोकतंत्र की धड़कन बन्द नहीं होगी।
(सरोकार डॉट नेट पर यह लेख मृत्युंजय ने लिखा है।मृत्युंजय सामाजिक कार्यकर्ता हैं और फिलवक्त बनारस में पीवीसीएचआर के
साथ मिल कर मानवाधिकारों पर काम कर रहे हैं. इनसे mreetyunjay@gmail.com
पर संपर्क किया जा सकता है)
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