आज हम 'बर्बरता के विरुद्ध' पर राकेश शर्मा की फिल्म 'फाइनल सॉल्यूशन' प्रस्तुत कर रहे हैं। यह फिल्म घृणा की राजनीति का बयान है। गुजरात में फिल्माई गयी फाइलन सॉल्यूशन 2002 में गुजरात में मुसलमानों के नरसंहार के ब्यौरे के जरिए भारत में दक्षिणपंथी राजनीति के बदलते चेहरे का विवरण देती है। फाइनल सॉल्यूशन 27 फरवरी, 2002 को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन में 58 हिंदुओं के जलने के बाद की गई नृशंस हिंसा की पड़ताल करती है। इस घटना की ''प्रतिक्रिया'' में, लगभग 2000 मुसलमानों को बर्बरता से मार डाला गया था, सैकड़ों महिलाओं का बलात्कार किया गया और और दो लाख से ज्यादा परिवारों को उनके घरों से बेदखल कर दिया गया था। नाजीवाद के इतिहास से संदर्भ लेते हुए, फिल्म का शीर्षक, राकेश शर्मा के शब्दों में, 'भारतीय फासीवाद' को उजागर करता है।
सेंसर बोर्ड ने भारत में इस फिल्म पर कई महीनों तक प्रतिबंध लगा रखा था। लेकिन प्रतिरोध में देशभर में सैकड़ों स्क्रीनिंग और लगातार कैंपेन के बाद उसे मजबूरन अक्टूबर 2004 में यह प्रतिबंध खत्म करना पड़ा। इस फिल्म को अब तक कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं।
फिल्म के निर्देशक राकेश शर्मा का परिचय- इन्होंने अपना फिल्म/टीवी कैरियर 1986 में श्याम बेनेगल के डिस्कवरी ऑफ इंडिया के सहायक निर्देशक के रूप में शुरू किया था। इनकी पहली स्वतंत्र फिल्म Aftershocks: The Rough Guide to Democracy को भी कई पुरस्कार मिल चुके हैं। यह 100 से अधिक अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में प्रदर्शित की जा चुकी है।
फाइनल सॉल्यूशन और आफ्टरशॉक्स : दि रफ गाइड टू डेमोक्रेसी दोनों ही फिल्मों को सरकार द्वारा संचालित मुंबई इंटरनेशनल फिल्मफेस्ट (एमआईएफएफ) ने क्रमश: 2004 और 2002 में प्रदर्शित करने से इंकार कर दिया गया था।
हमारा प्रयास रहेगा कि इस तरह की सारी फिल्में 'बर्बरता के विरुद्ध' के जरिए आप तक पहुंचाएं। यदि आपके पास फासीवाद, सांप्रदायिकता विरोधी फिल्मों, ऑडियो, पुस्तकों की कोई सूची हो तो हमें जरूर उपलब्ध कराएं।
सेंसर बोर्ड ने भारत में इस फिल्म पर कई महीनों तक प्रतिबंध लगा रखा था। लेकिन प्रतिरोध में देशभर में सैकड़ों स्क्रीनिंग और लगातार कैंपेन के बाद उसे मजबूरन अक्टूबर 2004 में यह प्रतिबंध खत्म करना पड़ा। इस फिल्म को अब तक कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं।
फिल्म के निर्देशक राकेश शर्मा का परिचय- इन्होंने अपना फिल्म/टीवी कैरियर 1986 में श्याम बेनेगल के डिस्कवरी ऑफ इंडिया के सहायक निर्देशक के रूप में शुरू किया था। इनकी पहली स्वतंत्र फिल्म Aftershocks: The Rough Guide to Democracy को भी कई पुरस्कार मिल चुके हैं। यह 100 से अधिक अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में प्रदर्शित की जा चुकी है।
फाइनल सॉल्यूशन और आफ्टरशॉक्स : दि रफ गाइड टू डेमोक्रेसी दोनों ही फिल्मों को सरकार द्वारा संचालित मुंबई इंटरनेशनल फिल्मफेस्ट (एमआईएफएफ) ने क्रमश: 2004 और 2002 में प्रदर्शित करने से इंकार कर दिया गया था।
हमारा प्रयास रहेगा कि इस तरह की सारी फिल्में 'बर्बरता के विरुद्ध' के जरिए आप तक पहुंचाएं। यदि आपके पास फासीवाद, सांप्रदायिकता विरोधी फिल्मों, ऑडियो, पुस्तकों की कोई सूची हो तो हमें जरूर उपलब्ध कराएं।
10 comments:
क्या ये ड़ाउनलोड नहीं हो सकती?
इसके लिए आपको अपने फायरफॉक्स ब्राउज़र में वीडियो डाउनलोडर नाम का एड-ऑन इंस्टॉल करना होगा. मुझे फिलहाल यही तरीका पता है.
संदीप भाई ,
शाम चार बजे के आस पास मेरी नज़र "गुजरात में घृणा ....." पर पड़ गई थी सोचा देर रात फिल्म देखूँगा और प्रतिक्रिया भी दे दूंगा पर कुछ देर पहले आपका मेल देख कर भागते भागते फिल्म देखी और विश्वास कीजिये देर रात पुनः तसल्ली से देखूँगा !
सबसे पहले डाक्टर राकेश शर्मा के हौसले / सृजनधर्मिता के लिए मेरा सलाम ! व्यावसायिक फिल्मो के दौर (बाजार) में इस तरह की फिल्म बनाने का रिस्क बिरले ही लेते हैं !
आज सुबह से मन में था की बीजेपी की 'कीमोथेरेपी' और आरएसएस के 'पागलपन' पर कुछ लिखूंगा पर वक़्त ...कुछ जमा नहीं ! देखिये कब लिख सकूँगा ..आज या फिर कभी .. !
आपने शायद गौर किया हो , पिछले कुछ दिनों से मैंने चुनिन्दा ब्लाग्स को परमानेंट लिंक किया हुआ है इसलिए हर दिन एक चक्कर लगा ही लेता हूँ !
अभिवादन !
रवि जी,
संदीप जी ने जो तरीका बताया है, इसके अलावा गूगल वीडियो के इस पेज http://video.google.com/videoplay?docid=3829364588351777769# के नीचे डाउनलोड लिंक दिया हुआ है जिससे आप फिल्म का mp4 रूप डाउनलोड कर सकते हैं.
मैंने संदीप जी द्वारा सुझाया तरीका अपनाया था लेकिन ग़लती यह रही कि मैं mp4 की बजाय flv फाइल चुन बैठा. १० मिनट की फिल्म रह गई थी कि लिंक टूट गया.
resume support होने के कारण mp4 फाइल्स डाउनलोड करना न्यादा अच्छा रहता है.
यह पूरी फ़िल्म मैनें आज ही देखी। सच्चाई सच में दर्दनाक है।
संदीप भाई, बेशक आप ब्लॉग का नाम सार्थक किए हुए हैं
भाई मुसोलीनी की आत्मकथा अवश्य पढ़िये, वाद नही वादी बुरे होते हैं।
hitlar aur muselini ki zaraj auladon ke bare mein janne ke liye behtar film hai
behtar film hai
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