आरएसएस से ज्यादा हिन्दुवत्ववादी है आई.बी.


एस एम मुशरिफ़


पिछले कुछ वर्षों से नई पीढ़ी की राजनीतिक आकांक्षाओं के दबाव में और कुछ अपने “हिन्दुवत्व मूल” पर हिन्दू मुखौटा चढाने की वजह से आर एस एस और उसके राजनितिक संगठन बी जे पी को पिछले वर्षों के दौरान अपने मूल एजेंडे के कुछ बिन्दुवों पर समझौता करना पड़ा जिसका एक नतीजा यह हुआ कि हिन्दुवत्व वादी एजेंडे के प्रति उनका उत्साह बड़ी हद तक कमजोर पड़ गया। लेकिन आई बी में मौजूद हिन्दुवत्व वादियों का मामला ऐसा नहीं है। वे संघ परिवार के एजेंडे को बराबर दिमाग में रखते हैं। और न केवल पहले की तरह ही उस एजेंडे के प्रति वफादार और समर्पित हैं बल्कि सरकार में लगातार बढ़ते प्रभाव और प्रशासन पर अपने दबदबे की बदौलत दिन-प्रतिदिन ज्यादा से ज्यादा दुस्साहसिक कारनामे अंजाम देने का हौसला पा रहे हैं। इस तरह धीरे-धीरे आई बी ने हिन्दुवत्व वादी के असल चैम्पियन की भूमिका अपना ली है और आर एस एस की विचारधारा और नीतियों का संरक्षक बन गई हैं। अगर हिन्दुवत्व वादी मानसिकता के आई बी अफसरों की आर एस एस एजेंडे प्रति ऐसी वफादारी और निष्ठां न होती तो आर एस एस की मूल आत्मा कब की मिट चुकी होती और अपने सारे संसाधनों और मजबूत संगठन के बावजूद समाज पर ऐसी मजबूत पकड़ वह हासिल न कर पाती जैसी कि उसने कर ली है। आर एस एस और आई बी एक दूसरे से कितने जुड़े हुए हैं, निम्न उदहारण से यह अच्छी तरह समझा जा सकता है:

दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेस्सर सैयद अब्दुर्रेह्मान गिलानी ने, जिनको दिल्ली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों ने संसद भवन पर आतंकी हमले के आरोप से बरी कर दिया था, तहलका ( 22 नवम्बर 2008 ) में लिखा है : ‘मैंने इस इंटेलिजेंस एजेंसी को बहुत करीब से देखा है। उनके साथ बैठ कर मुझे कभी ऐसा नहीं लगा कि मै एक लोकतांत्रिक देश के किसी सरकारी दफ्तर में बैठा हूँ। बल्कि हमेशा ऐसा प्रतीत हुआ कि मै आर एस एस के मुख्यालय में बैठा हूँ।''


मै “रा” को आई बी की श्रेणी में नहीं रखना चाहता क्यूंकि दोनों की विशेषताएं अलग हैं। और उसके निम्न कारण हैं :

1. “रा” (RAW: Research & Analyasis Wing ) की स्थापना आजादी के कोई बीस साल बाद इंदिरा गाँधी के शासन काल में हुई थी, इसलिए लगातार कोशिशों के बावजूद इस संगठन का आई बी की तरह हिंदुत्वीकरण नहीं हो सका। यूँ तो रा में भी कुछ अधिकारी हिंदुत्व वादी विचारधारा के हैं, मगर ऐसा मामला एक-आध ही हो सकता है इसलिए इस संस्था में उस प्रकार की वैचारिक घुसपैठ नहीं हो सकी जिस तरह आई बी में हो गयी है।

2. इसके अलावा यह कि “रा” का कार्य क्षेत्र पाकिस्तान, बंगला देश, चीन, अफगानिस्तान, श्रीलंका और कुछ दूसरे देशों तक सीमित है और वह देश के आंतरिक मामलों पर प्रभाव नहीं डाल सकती। इसलिए आई बी की तरह उपस्तिथि महसूस नहीं हो सकती।

3. पिछले कुछ वर्षों के दौरान इन दोनों संगठनो में प्रोफेशनल मुकाबला इस हद तक पहुँच गया है कि दोनों एक दूसरे को नीचा दिखाने का एक भी अवसर हाथ से जाने नहीं देते।

इस वजह से “रा” में काफी संख्या में हिन्दुवत्व वादी अधिकारीयों की मौजूदगी के बावजूद आर एस एस और दूसरे हिन्दुवत्व वादी संगठन उसको ‘अपना’ नहीं समझते और उसपर ज्यादा भरोसा नहीं करते। यद्यपि समय-समय पर वे अपने उद्देश्यों के लिये उसका उपयोग भी करते हैं। नतीजे के तौर पर आई बी धीरे-धीरे सबसे ज्यादा शक्तिशाली संगठन बन गई है।

एस एम मुशरिफ़
पूर्व आई जी पुलिस
महाराष्ट्र


1 comment:

रवि कुमार, रावतभाटा said...

गिलानी जी की बात बेहद गंभीर है...