शबनम हाशमी
वे सारे लोग जो मुसलमान औरतों के हालात पर आंसू बहाते नहीं थकते वे आज जश्न मना रहे हैं हिंदुस्तान में शांति का। वे कह रहे हैं कितना संयम बरत रहा है हिंदुस्तान। कोई हिंसा नहीं। आम मुसलमान उन्हें याद आ गया है जो सिर्फ रोज़ी-रोटी चाहता है। वे बहुत खुश है फैसले से। सरकार की तरीफ़ कर रहे हैं और कुछ तो तीनों न्यायाधीशों को भारत रत्न देने को तैयार हैं।
जिस तरह एक पिछड़ी हुई मुसलमान औरत ने अपने हालात से इतना समझौता कर लिया है कि वह इस बात पर खुद भी यकीन करने लगी है कि बुरखा पहनना उसके लिए ज़रूरी है और उसका फ़र्ज़ है कि वह शौहर की सेवा करे और घर में रहे; उसी तरह भारत के आम मुसलमान को इतनी खूबसूरती से दूसरे दर्ज़े का नागरिक बना दिया गया है कि वह हाथ जोड़ कर खड़ा है कि माय-बाप आपकी बहुत कृपा है कि आपने फ़ैसला भगवा बिग्रेड के हक़ में दे दिया और हमारे घर जलने से बच गए।
पिछले दो महीने का तमाशा जिसमें पूरे हिंदुस्तान में मुसलमान आतंकित हो कर जी रहा था। उत्तर प्रदेश में बाप ने बच्चों को घर बुला लिया था, गुजरात में गांव के गांव खाली हो गए थे, बिहार से फ़ोन आ रहे थे कि हमारे बच्चे जो मध्यप्रदेश में पढ़ते हैं उनके लिए कोई सुरक्षित जगह ढूंढ़ दीजिए, राजस्थान में आदिवासियों को हमला करने के लिए भड़काया जा रहा था, उड़ीसा, कर्नाटक, केरल, गोवा कौन-सी ऐसी जगह थी जहां से लगातार ऐसी खबरें नहीं आ रही थीं। हां ये खबरें कॉरपोरेट मीडिया के फ़ाइव स्टार पत्रकारों के पास नहीं आती।
सरकार का काम होता है ऐसे पूरे इंतज़ाम करना जिससे क़ानून और व्यवस्था क़ायम रहे और शांति बने रहे, लेकिन मुसलमानों की हक़दार राजनीतिक पार्टी, जो लिब्रहान कमिशन की रिपोर्ट को बिल्कुल गायब कर चुकी है, उसने ये नया फार्मूला निकाला, आरएसएस के साथ मिलीभगत करके शांति बनाए रखने का। दो महीने से डरा-दुबका मुसलमान अगर अपने घरों पर हमले ना होने, उन्हें ना जलाये जाने और अपने बच्चों पर हमले न होने का शुक्र ना मनाता तो क्या करता?
क्या फ़ैसला उल्टा होता तो यह संयम नज़र आता? क्या यह सरकार फ़ैसला उल्टा होने पर अपना फ़र्ज़ अदा करती? यह किस संयम की बात हो रही है इस वक़्त? इन पत्रकारों की ज़िंदगी में क्या मुसलमान कभी सड़कों पर उतरा है तलवारें, डंडे और त्रिशूल लेकर?
गुजरात में भी शांति है। 2002 के बाद जितने लोगों ने गांव जाकर शांति से रहना चाहा, उनको सारे मुक़दमे वापस लेने पड़े। काफी लोग ऐसी शांति में जी रहे हैं। रोज सुबह-शाम उनकी बेटियों के क़ातिल उनके सामने से गुज़रते हैं। लेकिन क्या फिर वही गुजरात की बात, कितनी बार बताया है मीडियो के 'दोस्तों' ने कि वे ऊब चुके हैं इन कहानियों से।
हमारे देश में ऑनर किलिंग भी आस्था है, हमारे देश में सती भी आस्था है, हमारे देश में बेटे पैदा करना भी आस्था है। कितनी आस्थाओं को हम अब पूरा करेंगे और उस शांति की क्या क़ीमत देंगी आगे आने वाली पीढ़ियां?
हिंदुस्तान का क़ानून और संविधान आस्था की बलि चढ़ गया।
यहां बहुत शांति है। मेरे बहुत सारे सेक्युलर दोस्तों, काफ़ी पत्रकारों और यूपीए सरकार को यह शांति मुबारक़ हो।
याद रहे अब सवाल करना भी ज़ुर्म है। संविधान और क़ानून की बात करोगे तो एक्टिविस्ट के बदले कट्टर मुसलमान कहलाओगे।
गलत सवाल पूछ कर गलत जवाब पाओगे
उठो सही सवाल पूछने का वक़्त आ गया
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