tag:blogger.com,1999:blog-608632017228824414.post3769123933147819667..comments2023-08-01T18:39:57.464+05:30Comments on बर्बरता के विरुद्ध: ''देसी'' हिंदुत्व के विदेशी संबंध और प्रभावसंदीपhttp://www.blogger.com/profile/01871787984864513003noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-608632017228824414.post-40255895042360443802009-09-03T10:23:25.030+05:302009-09-03T10:23:25.030+05:30हाँ इन उल्लेखों से संघ के पन्ने भरे पड़े हैं पर बहु...हाँ इन उल्लेखों से संघ के पन्ने भरे पड़े हैं पर बहुत से दस्तावेज वे अब गायब कर रहे हैं या बदल रहे हैं. आज भी उनका आदर्श इजरायल, अमेरिका जैसे देश हैंEk ziddi dhunhttps://www.blogger.com/profile/05414056006358482570noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-608632017228824414.post-34687523459463840842009-08-16T20:29:17.550+05:302009-08-16T20:29:17.550+05:30स्वदेशी की बात कहने वाले लोग विदेशी मदद से आजादी ...स्वदेशी की बात कहने वाले लोग विदेशी मदद से आजादी की बात कह रहे हैं। भारत के लोग क्या नपुंसक हो गए थे जो देश में रहने वाले एक लाख बर्तानियों को भगाने के लिए फ्रासं, जर्मनी और जापान की मदद लेनी पड़ती। शायद यही विचार रहा हो जिसके कारण आजादी की लड़ाई से हिंदुवादी विचारों वाले लोगों ने दूरी बनाए रखी।<br /><br />असली आजादी वही होती है और वही हो सकती है जो अवाम अपनी कुर्बानियों से हासिल करती है विदेशी मदद से मिलने वाली आजादी वास्तव में एक नई गुलामी की ही शुरुआत होती है।<br /><br /><br />पाकिस्तान और तालिबान का हौआ खत्म हुआ तो चीन के भारत को बांटने का नया शिगूफा छोड़ दिया गया। जैसे चीन की अपनी अन्दरूनी समस्याएं कोई कम हों। ऐसे मूर्खतापूर्ण विचारों को मीडिया में जगह मिल रही है तो यह भी एक बौद्धिक त्रासदी का संकेत है। चीन अगर साम्राज्यवादी आकांक्षाएं पाले हुए है तो अपनी कूव्वत भर भारत भी ऐसी आकांक्षाएं पाले हुए है। <br /><br />वैसे महत्वपूर्ण बात यह नहीं है महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे देश में ही ऐसे लोगों की बहुत बड़ी फौज पहले से मौजूद है जो धर्म जाति के नाम पर देश को बांटने के लिए अपना पूरा जोर लगाए हुए है। इसके लिए चीन या पाकिस्तान या अमेरिका, ब्रिटेन की जरूरत ही क्या है।<br /><br />वैसे प्रश्न तो यह भी है कि हम एक हैं भी क्या।जय पुष्पhttps://www.blogger.com/profile/01821339425026535625noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-608632017228824414.post-57183617204714300282009-08-16T18:29:15.427+05:302009-08-16T18:29:15.427+05:30शत्रु का शत्रु = मित्र वाला समीकरन तो आपको पता हो...शत्रु का शत्रु = मित्र वाला समीकरन तो आपको पता होगा।<br /><br />इसे नेताजी जानते थे; सावरकर जानते थे; रासबिहारी बोस जानते थे; और भारत के कम्युनिस्ट भी जानते हैं। कैसे?<br /><br />हिटलर, सोवियत-संघौर कम्युनिज्म का का दुश्मन था; इसलिये भारत के कम्युनिस्टों के लिये भी दुश्मन हुआ।<br /><br />यदि अमेरिका की तरह समय से फ्रांस, जर्मनी और जापान से सहायता ली गयी होती तो भार कम से कम दो दशक पहले आजाद हो गया होता और पाकिस्तान बनने की गुंजाइस भी नहीं आयी होती।<br /><br />लेकिन इससे क्या? आप तो चीन द्वारा भारत को तोड़ने के विचार पर लिखने से भागने के लिये कुछ भौंकना चाहते थे, सो भोंक दिया।अनुनाद सिंहhttps://www.blogger.com/profile/05634421007709892634noreply@blogger.com